06 अगस्त 2008

क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?


क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
क्यों रे मन तू ना समझे?
पल की कुछ ख़बर नही,
हर दम सोचे कल की|

क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
खूब करे विनय निवेदन, मांगे मन भर मन्नते
जीवित प्राणी की कोई पूछ नही,
पत्थरों को खूब पूजे|

क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
देखे खुली आंखों से सपने,
रात-रात नींद आती नही,
जाग-जाग चिंतित मन जागे|

क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
धन-दौलत की चाह मे, उनत्ति की सीढियां चढ़े
मित्र ना बंधू, पास कोई भी नहीं
एकाकी जीवन काटे|

क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
क्यों रे मन तू ना समझे?

6 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
क्यों रे मन तू ना समझे?
बहुत ही सुन्दर ओर शिक्षा से भरपुर हे आप की यह कविता धन्यवाद

रश्मि प्रभा... ने कहा…

क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
धन-दौलत की चाह मे, उनत्ति की सीढियां चढ़े
मित्र ना बंधू, पास कोई .......
bahut achhi sachchaai liye

कृष्णशंकर सोनाने ने कहा…

क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
खूब करे विनय निवेदन, मांगे मन भर मन्नते
जीवित प्राणी की कोई पूछ नही,
पत्थरों को खूब पूजे
यदि मनुष्य अपना अहं त्यागकर इन्सान की पूछपरख करें तो उसे पत्थरों को पूजने की आवश्यकता नहीं पड़ती । लेकिन वह जीते जागते भगवान के महत्व को नहीं समझता । हम सभी यही करते है इसलिए तो ज्ञान की बातें करते है किन्तु उस पर अमल नहीं करते ।
-.कृष्णशंकर सोनाने
visit:-
www.krishnshanker.blogspot.com

कृष्णशंकर सोनाने ने कहा…

क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
खूब करे विनय निवेदन, मांगे मन भर मन्नते
जीवित प्राणी की कोई पूछ नही,
पत्थरों को खूब पूजे.
यदि मनुष्य अपना अहं त्यागकर इन्सान की पूछपरख करें तो उसे पत्थरों को पूजने की आवश्यकता नहीं पड़ती । लेकिन वह जीते जागते भगवान के महत्व को नहीं समझता । हम सभी यही करते है इसलिए तो ज्ञान की बातें करते है किन्तु उस पर अमल नहीं करते ।
-.कृष्णशंकर सोनाने

बेनामी ने कहा…

क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
खूब करे विनय निवेदन, मांगे मन भर मन्नते
जीवित प्राणी की कोई पूछ नही,
पत्थरों को खूब पूजे.
यदि मनुष्य अपना अहं त्यागकर इन्सान की पूछपरख करें तो उसे पत्थरों को पूजने की आवश्यकता नहीं पड़ती । लेकिन वह जीते जागते भगवान के महत्व को नहीं समझता । हम सभी यही करते है इसलिए तो ज्ञान की बातें करते है किन्तु उस पर अमल नहीं करते ।
-.कृष्णशंकर सोनाने

कृष्णशंकर सोनाने ने कहा…

क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
खूब करे विनय निवेदन, मांगे मन भर मन्नते
जीवित प्राणी की कोई पूछ नही,
पत्थरों को खूब पूजे.
यदि मनुष्य अपना अहं त्यागकर इन्सान की पूछपरख करें तो उसे पत्थरों को पूजने की आवश्यकता नहीं पड़ती । लेकिन वह जीते जागते भगवान के महत्व को नहीं समझता । हम सभी यही करते है इसलिए तो ज्ञान की बातें करते है किन्तु उस पर अमल नहीं करते ।
-.कृष्णशंकर सोनाने