19 जून 2008

दिलों की मजिल


मंजिल है...दिल तक पहुँचने की
इस राह मे,
ना जाने कितनी
हसरतें जागती है|
बिन पूछे मुझसे
मुझी को सताती हैं|
न कभी देखा,
ना कभी जाना जिसे,
ना ही महसूस किया कभी,
कहाँ से आकर जाने ?
दिल मे मेरे,
सुबह शाम मुझे जगाती है|
इस राह मे,
सुंदर सपनों की दुनिया है|
बादलों का छत,
और फूलों की जमीन है|
कभी इस पर भी,
काँटों का साथ मिलता है|
दिल रोता है... तब
जब, सपना कोई टूटता है
लेकिन मायूसी...ना
कभी भी इसकी हमसफ़र नही|
हिम्मत रहे बाकी
दिलों की मजिल अब दूर नही|