09 मई 2008

पहाड़


एक पहाड़,
एक चट्टान,
एक विरानगी,
क्या-क्या कहते है उसे|
अनगिनत नामों से उसे पुकारें|
वो जो रास्ते मे खड़ा है,
पत्थरों का ढ़ेर बना है|
सिने मे उसके,
दफन हैं, कई जख्म जैसे|
कभी पड़े खून के छीटें,
कभी चलीं तलवारें,
समय की मार उसे मिली,
मिली उसे, निगाहों की उदासी|
जेठ की धूप मे,
जरजर हुआ, उसका हर कोना
टूटता गया, हर हिस्सा
बह गया, भादों की पानी मे
सावन आए तो आये,
बाहर ना, उस पर आये
नन्हें पौधों को, तरसता रहे
रोम-रोम उसका,
धरती उसकी बंजर कहलाये|
सब सहते-सहते
बन गया वो 'एक पहाड़'|
जो हर मुश्किल सह जाए,
सीखें तो इससे कुछ सीखें,
अडिग, अचल, अभय है
नतमस्तक नही किसी के आगे|
लड़े एक वीर जैसे,
हर विपदा, हर बाधा से|
इतिहास से लेकर वर्तमान तक,
लड़ता आया वह, प्रतिकूलता से
चुप रह कर,
'पाषाण' शब्द यथार्थ करे
बंधे है, कदम उसके अपनी जड़ों से
छवि उसकी, हिम्मत जगाये
वीरता की गाथा सुनायें|