
खेतों खलिहानों मे दौड़ते वो बच्चे
मिट्टी से सने पानी मे खेलते वो बच्चे
पसीने से तर है उनके बदन
बिन कपडों के नंगे है उनके बदन
भूख से बिलबिलाते वो बच्चे
धुप मे काले हो गए उनके चेहरे
भूख से कभी पीले पड़ गए वो चेहरे
माता पिता को कड़ी मेहनत करते देख रहे वो बच्चे
फिर कैसे उनसे रोटी मांगे वो बच्चे
खेल मे तल्लीन रहने का करते है बहाना
भगवान् से बस प्रार्थना करते है वो बच्चे
कब अच्छे दिन आयेंगे? जब पेट भर वो भी खा पायेंगे
किसान जो लाखों का पेट भरता है
जो हमें सक्षम सबल बनता है
कितनी विडम्बना है उसकी
भूख से बिलबिला रहे है उसीके बच्चे
दो जून की रोटी के लिए रो रहे है
उसे फटे चिथडों को पहनाना पड़ता है
पाठशाला का कभी मुंह नही देखे, वो बच्चे
हाय रे ! और उन्हें ही देश का भविष्य बनाना है
कैसे भविष्य बनायेंगे वो बच्चे ?
जो ख़ुद इतनी जर्जर अवस्था मे है वो बच्चे