23 जनवरी 2009

सोच बंदी है हमारी


ऐसा क्यों है
मै इतना कुछ महसूस करती हूँ
और कुछ भी नही बोल पाती हूँ
इतना कुछ सोचती हूँ
और जुबान खामोश रहते है
ऐसा क्यों है?

क्यों सबकी सुनती हूँ
कभी लगता है ये
सारी आवाजे मेरे भीतर फट जायेंगी
कंही मुझे बहरा तो बना देंगी
क्यों खामोशियों के साथ जीने की आदत सी हो गई है
ऐसा क्यों है?

कितना कुछ बोलना चाहती हूँ
लेकिन मन मसोश कर रह जाती हूँ
कितना कुछ बताना चाहती हूँ
लेकिन समझाऊ किसे
सारी सोच बताऊँ किसे
कौन मेरी समझेगा?
कौन मेरी सुनेगा?
ऐसा क्यों है?

जबाब मेरे पास भी नही
जबाब आपके पास भी नही होगा
हम सब ऐसे ही बन गए है
सिर्फ़ बोलना चाहते है आजादी के बोल
लेकिन मुह बंद है हमारे
समझाना और समझना चाहते हम
लेकिन सोच बंदी है हमारी

और हम सोचते है हम आजाद है
अगर ऐसा ही है,
तो मै पूछती हूँ सबसे
ऐसा क्यों है?