11 सितंबर 2008

रेत का महल



रेत का महल
क्यों? बनाते है हम
अनजान सागर की लहरों से
क्या? जानते नही उसकी शक्ति
जिसका कोई आधार ही नही
इमारतें उसकी चढाते है क्यों?
नन्हे बच्चों सी गलती
बार-बार करते ही है क्यों?
हँसी-हँसी की खेल मे
लहरों पर घर क्यों टिकाते है?
रेत के महल को
क्यों? हम किनारों पर सजाते है
ढह जायेगा, बह जायेगा सब
क्या? सहने की शक्ति हम रखते है
गर पास नही वो हिम्मत, वो साहस
फिर क्यों? उम्मीदों पर जिंदगी गुजारते है
सपने बुनने का अधिकार है सभी को
लेकिन लहरों से भिड़ने को तैयार होना होगा
जब बनाया रेत का महल सागर किनारे
तो लहरों से 'ना' डरना होगा
फिर सजाओ जी भर अपना महल
नन्ही उम्मंगों से, अपनी हिम्मतों से|
रेत के महल का आधार रेत मे बनेगा
जिसके शिला मे हो तूफानों का असर मिला
उस महल को खतरों से फिर डर क्या .....

08 सितंबर 2008

मै एक साधारण मनुष्य


मै एक साधारण मनुष्य
एक लोभी
एक प्यासा
मृगतृष्णा मे भटकने वाला
लेश मात्र एक काया
पाप से लिप्त ये जीवन
मोह पाश मे बंधा हुया
इर्ष्या की अग्नी जिसे जलाती है
धन की आस जिसे लुभाती है
हर छड़ सपनों मे खोया
सब कुछ जीवन मे एक माया
प्रभु की भक्ति मे
मन नही रमता
सुख की तृप्ति के लिए
'कर' जोड़ करे प्रार्थना
सिर्फ़ एक स्वार्थ अपना
बुनते रहे पाप का जाल
हर प्राणी से जितने की होड़
मै एक साधारण मनुष्य
एक 'निज कर्मी'
एक 'अधर्मी'