30 अप्रैल 2008

शाम की दुल्हन


धीरे-धीरे शाम का आगमन हुआ|
चुपके-चुपके बचपन उसका अस्त हुआ|

शाम की दुल्हन आई है,
मिलने अपने साजन से|
होठों पर उंगली रख,
पैरों मे बाँध पायल,
हौले-हौले हवा ने उसका घूँघट उठाया,
छम-छम से, पायल ने शोर मचाया|

रूप उसने आज खूब सवारां,
घूँघट की आड़ से, करती इशारा
मिलन बेला बीत जाए ना,
सोच यही, मन उसका घबराया|
मधम-मधम शाम चली बनने निशा,
हलचल है, पल-पल घबराए उसका जिया|

माथे पर उसकी मोतियाँ खिली,
बांहों मे आकर पिया के, अपनी
कुछ देर को थम गया हर आलम,
देख-देख यह सुंदर नजारा|
सन्नाटे मे सब कुछ शांत हुआ,
शाम की दुल्हन बन गई रात का सपना|

आँखे खुली तो उसने देखा,
उषा किरणें कर रहीं हैं, उसे छेड़ा
चौक कर उठ गई वह नींद से,
घूँघट मे अपना मुख छुपाया|
मलते-मलते आंखें अपनी, बिखरे केशों को सवारा
आँचल से ढक माथे को, कर गई कल आने का वादा|