25 अप्रैल 2008

अम्बर


नीली छतरी,
मौसम भीनी -भीनी,
पागल ..........पानी
रस बरसाये,
अम्बर
ओढे धरती, चुनर धानी-धानी|
भींगे धरती,
महक सोंधी-सोंधी,
आवारा.....बादल
रूप बदले,
अम्बर
झुक-झुक आए बारी-बारी|
शीतल वयारी,
सिहरन ठण्डी-ठण्डी,
चतुर.......बिजली
हठ करे,
अम्बर
कड़के धडके, करे मनमानी|
बिजली-मेघ-पानी,
सबने अपनी ठानी,
दम भरे.....अपना
डरती-घबराती....धरती रानी,
अम्बर
अंक समाये, बन दुल्हन नवेली|