25 जनवरी 2008
माँ
ओह माँ
तेरी ममता कि सी छाँव
कही नहीं है
जांहा आकर हर दुःख
दूर हो जाये
हर आंसू बिलुप्त हो जाये
ऐसी वो धार और
कही नहीं है
जो तू फेर दे प्यार भरा वो हाँथ
फिर से मेरे माथे पर
दूर हो जाये मेरी हर थकन
ओह ...ऐसा आराम और
कही नहीं है
ओह माँ
तेरी ममता कि सी छाँव
कही नही है
24 जनवरी 2008
चाँद के साथ साथ
चाँद के साथ साथ...............
आसमान पर खिल उठा है , वो पुरा चाँद आज,
बादल की कुछ परतें कर रहीं हैं
संग उसके अटखेलियाँ ....................
बहती हुई हवा की मस्त धीमी चाल ,
छेड़ रही है चाँदनी को,
वो मुस्कुराता हुआ धीमे धीमे पुरा चाँद............
आज उसे भी क्या , किसी का ख्याल आया है,
जैसे ऊठ रहे है मन मे कई विचार ,
कुछ शरमाता , कुछ सकुचाता वो चाँद..............
दूर घटाओं को देख कर कभी डर रहा है उसका मन ,
अपनी चाँदनी को छुपा रहा है वो ख़ुद मे,
समेट रहा है अपना हर प्रकाश ..........................
कुछ छुपा छुपा सा , लगता है जैसे,
कर रहा हो कोई खेल , या
डर गया है , वो अपनी ही भावनाओ से ...................
उसके मन मे चल रहा है, जैसे कोई द्वंद ,
कोई लड़ाई ख़ुद से ही ,
और अब झांक रहा है उस पेड़ की डाली से .......................
फिर भी डरते हुए, फिर भी सकुचाते हुए,
डाली डाली कभी निकलता हुआ, कभी छुपता हुआ
कभी डरपोक और कभी निर्भय वो चाँद.....................
उसकी चाँदनी फिर लगी है बिखरने ,
फिर उसका प्रकाश लगा है जगमगाने
आसमान हुआ सुनहला जैसे ,शरमाती हुई कोई दुलहन ......................
पेड़ की डाली डाली झूमती, देती है उसका साथ,
बादल भी खेल रहा, चाँद के साथ साथ
जीत रहा है वो चाँद ,अपनी हर सोच पर........................
फिर से खिल गया वो पुरा चाँद आसमान मे ,
फिर से पुरी हो गई उसकी हर आस ,
कदम से कदम बढ़ चले अब चाँद के साथ साथ.......................
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