04 अप्रैल 2008

आधुनिक जिंदगी


कौन सा रूप है तेरा?
ना जाने कितने हाँथ है तेरे?
और कितना चेहरा?
रावण कभी हुआ करता था,
दसमुख, दसानन
आज तू है वो 'रावण'
'आधुनिक जिंदगी' नाम तेरा
पल-पल बदले अपना चेहरा
रूप तेरा हर पल नया-नया
बस आता तुझे सबको लुभाना
कभी अपनी चमक से,
कभी अपनी दमक से,
तू, एक जिवंत मृग-त्रिसना
तू ,एक भुलौना
इस संसार मे, सब भूले
भूले अपना सम्मान तक, तुझमे
झूठे तेरे चेहरे मे|
भूले सब, अपना असली चेहरा|
तू क्यों न दिखाती है? रूप अपना
चल फेक दे ये मुखौटा|
जो बना देता है, तुझे डरावना
देखे सब तुझे, पावन रूप तेरा
की तू भी कभी सच करती थी हुआ,
जैसे असत्य पर सत्य की विजय हुयी,
तू भी हटा, इस माया जाल को
हटा दे, इस मकडी जाल को
ख़ुद मे जो सब को फाँस रहा|
हर छन तुझे निगल रहा|
उठ, तू भी अपना बिगुल बजा
काट दे, अपने अनगिनत हाँथ
उतार दे, अपना ये चोला
आ! तू अपने रूप मे आ|
दिखा! तू नही मरीचिका|
तू नही, कोई भ्रम
दे! तू अपना परिचय
तू है 'जिंदगी'
तू है 'सच'
तू है 'पावन'|

01 अप्रैल 2008

इंतजार अभी बाकी है.....


कभी आहट आती है
कभी सरसराहट सी होती है
उस दिशा मे मुड़ जाती है
'नजर' जहाँ से आवाजें आती है
लेकिन समझे ना मन ये
इंतजार अभी बाकी है ......
हथेलियों को कानों पर रख कर
बंद करते हुए, पलकों को
ध्यान हटाते है, ' तुमसे' अपना
इस मन को एक ही भटक होती है
लेकिन कौन मन को समझाये
इन्तजार अभी बाकी है ......
समय बीते अपनी रफ़्तार मे
जैसे कोई सन्नाटा सा छा जाए
दिल की धड़कनों मे घुलती जाए
बस घड़ी की टिक-टिक
लेकिन समझाने से मन ना समझे
इंतजार अभी बाकी है .....
बेचैनी बढ़ती जाए
लम्बी साँसों मे वक्त गुजरे
एक ही धुन मन मे रमता जाए
एक ही आहट की आह लेते रहते है
लेकिन समझ पाए मन ये
इंतजार अभी बाकी है.....