
कौन सा रूप है तेरा?
ना जाने कितने हाँथ है तेरे?
और कितना चेहरा?
रावण कभी हुआ करता था,
दसमुख, दसानन
आज तू है वो 'रावण'
'आधुनिक जिंदगी' नाम तेरा
पल-पल बदले अपना चेहरा
रूप तेरा हर पल नया-नया
बस आता तुझे सबको लुभाना
कभी अपनी चमक से,
कभी अपनी दमक से,
तू, एक जिवंत मृग-त्रिसना
तू ,एक भुलौना
इस संसार मे, सब भूले
भूले अपना सम्मान तक, तुझमे
झूठे तेरे चेहरे मे|
भूले सब, अपना असली चेहरा|
तू क्यों न दिखाती है? रूप अपना
चल फेक दे ये मुखौटा|
जो बना देता है, तुझे डरावना
देखे सब तुझे, पावन रूप तेरा
की तू भी कभी सच करती थी हुआ,
जैसे असत्य पर सत्य की विजय हुयी,
तू भी हटा, इस माया जाल को
हटा दे, इस मकडी जाल को
ख़ुद मे जो सब को फाँस रहा|
हर छन तुझे निगल रहा|
उठ, तू भी अपना बिगुल बजा
काट दे, अपने अनगिनत हाँथ
उतार दे, अपना ये चोला
आ! तू अपने रूप मे आ|
दिखा! तू नही मरीचिका|
तू नही, कोई भ्रम
दे! तू अपना परिचय
तू है 'जिंदगी'
तू है 'सच'
तू है 'पावन'|