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क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
क्यों रे मन तू ना समझे?
पल की कुछ ख़बर नही,
हर दम सोचे कल की|
क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
खूब करे विनय निवेदन, मांगे मन भर मन्नते
जीवित प्राणी की कोई पूछ नही,
पत्थरों को खूब पूजे|
क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
देखे खुली आंखों से सपने,
रात-रात नींद आती नही,
जाग-जाग चिंतित मन जागे|
क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
धन-दौलत की चाह मे, उनत्ति की सीढियां चढ़े
मित्र ना बंधू, पास कोई भी नहीं
एकाकी जीवन काटे|
क्यों आठ पहर की चिंता तुझको?
क्यों रे मन तू ना समझे?