05 फ़रवरी 2008

राही




ईन राहों पर
चलते -चलते ,
तनहा पग
बढाते -बढाते ,
मौसम को अपना साथी बना लिया
देखी इन आंखो ने
पतझर संग बहार भी ,
तो बहार के रंगो को बटोर लिया
जब-जब छाँव
आई जिंदगी में ,
तब-तब धूप की चुभन को भी महसूस किया ,
सुनी राह पर
सभी राहगीर साथी मेरे
इन्द्रधनुष ये जीवन
सभी रंग इसके कच्चे पक्के
एक रंग सुख-एक रंग दुःख
एक रंग आशा-एक रंग निराशा ,
सच-झूठ सबका मेल लिए
कभी कांटे- कभी फूलों कि महक मिली
तो फूलों से ही बहारों का अभिनन्दन किया ,