14 मार्च 2008

बचपन


छप-छप पानी
छप-छप पानी
पानी मे करते, हम नादानी
छप-छप पानी
छप-छप पानी
पानी मे बहती, कागज़ की कश्ती
रिमझिम बारिश
रिमझिम बारिश
बारिश मे करते, हम शैतानी
रिमझिम बारिश
रिमझिम बारिश
बारिश मे भींगते, लेकर छतरी
टीम-टीम तारे
टीम-टीम तारे
तारों के संग, सोते जागते
टीम-टीम तारे
टीम-टीम तारे
तारों के संग होती सौ-सौ बातें
चन्दा मामा
चन्दा मामा
कहते, वहाँ रहती है नानी की परियां
चन्दा मामा
चन्दा मामा
माँ कहती, खालो उनके नाम का एक निवाला
लुकछिप खेलें
लुकछिप खेलें
आंखें बंद कर, सबको देखे
लुकछिप खेलें
लुकछिप खेलें
गिनती गिन-गिन, हम सब भागे
वो पलछिन
वो पलछिन
गुजरे हुए पल, गुजर गए वो दिन
वो पलछिन
वो पलछिन
बिसार दी सब बातें, लेकिन भुला ना पाए बचपन

12 मार्च 2008

आत्मा की सुने


आँसुओ की,
तेरी दुनिया मे कोई कीमत नहीं|
तेरी दुनिया मे रोने की भी,
शिकायत होती है|
गम छुपाना,
बड़ा मुश्किल है, काम
आंखों मे जब नमी भर जाती हैं,
तेरी दुनिया मे लोग कहते हैं,
हँसी मे, आंखें हैं छलक गई|
दुखों के साथ रहना,
अपनी-अपनी मुश्किलों के साथ जीना,
घुटन मे दम अपना घोटते रहना,
तेरी दुनिया मे वाहवाही के लायक,
यह बात है, समझी जाती|
रोते है जो,
दुखों पर उसके लोग हँसते हैं|
लोग वही जो इन्ही दुखों को छुपा कर जीते हैं
तेरी दुनिया मे बाहरी चीख पुकार सुनी और सुनायी जाती है|
भले आत्मा रह जाये, धिक्कारती|
आत्मा की सुने,
या सुने तेरी दुनिया के लोगों की?
अपनी दुखों के साथ हँसते हुए जिए,
या आँसुओ को छुपा कर, खुश होने का भ्रम रखे?
भ्रम यह की, हम है सबसे सुखी
भ्रम यह की, हमें कोई भी दुःख नहीं
शायद तेरी दुनिया के लोगों को पता नहीं,
आत्मा जो है, कहती
सच्चाई वही है, होती
सुख और दुःख को मिलाकर ही
जिंदगी सच के पैमाने पर खरी है उत्तरती|

11 मार्च 2008

फागुन


मस्त हवा जब चली,
बादल घिर-घिर आए, कोयल बोली
डाली-डाली फिर से झूमी,
आम के बौर से, डालियाँ झुकी-झुकी
उड़ते पखेरू, पंख फैलाये
गगन को चूमते, अपना आसमान बनाए
जगत का रंग भया सिंदूरी,
धरती ने दुल्हनवाली चादर ओढ़ी,
छुपते छुपाते कुछ शरमाते,
जैसे कोई गोपी, घूँघट खोले
बिल्कुल सुहावना ये नव-रूप,
मधुरिमा इसकी, प्रकृति की हर लय मे
जैसे दूर बजतें हो ढोल और मृदंग,
संग-संग उड़ते, गुलाल रंग-रंग के
सब रंग ये, धरती पर आ बिखरे
सुगन्धित हुआ अबकि, फ़ागुन
देख-देख जिसे, नयन लेते सुख|

दम भर को ....


थोड़ी देर जो तुम ठहरो,
हम भी तुम्हारे साथ चलें|
बेरुखी से तुम ये ना कहना,
दम भर को फुर्सत नहीं|
तन्हाई मे जो तुम जीते हो,
महफ़िल मे भी, तन्हा रहते हो
जो थाम लो, हाथ मेरा
तो हम भी बन जाए तुम्हारे साथी|
तीखे नज़रों से अपने ये ना कहना,
दम भर को हमें फुर्सत नहीं|
कई बार तुम्हें देखा है, अकेले-अकेले
कई बार तुम्हें देखा है, परछाई से बतियाते
सच है, तन्हा रह गए हो तुम भी
जिन्गदी का सफर अभी बहुत है, बाकी
देखो फिर से मुझे तुम ना झूठलाना,
की दम भर को फुर्सत नहीं|