19 जून 2008

दिलों की मजिल


मंजिल है...दिल तक पहुँचने की
इस राह मे,
ना जाने कितनी
हसरतें जागती है|
बिन पूछे मुझसे
मुझी को सताती हैं|
न कभी देखा,
ना कभी जाना जिसे,
ना ही महसूस किया कभी,
कहाँ से आकर जाने ?
दिल मे मेरे,
सुबह शाम मुझे जगाती है|
इस राह मे,
सुंदर सपनों की दुनिया है|
बादलों का छत,
और फूलों की जमीन है|
कभी इस पर भी,
काँटों का साथ मिलता है|
दिल रोता है... तब
जब, सपना कोई टूटता है
लेकिन मायूसी...ना
कभी भी इसकी हमसफ़र नही|
हिम्मत रहे बाकी
दिलों की मजिल अब दूर नही|

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

इस राह मे,
सुंदर सपनों की दुनिया है|
बादलों का छत,
और फूलों की जमीन है|
vha kya baat hai.ati sundar. likhati rhe.aap apna word verification hata le taki humko tipani dene mei aasani ho.

बेनामी ने कहा…

menka ji bahut sundar kavita hai,sahi bhi kaha apne jab himmat saath ho rasta jitna mushkil ho dil ki manzil mil hi jati hai,bahut badhai. sadar mehek.

बेनामी ने कहा…

इस राह मे,
ना जाने कितनी
हसरतें जागती है|
बिन पूछे मुझसे
मुझी को सताती हैं|


Bahut khoob!
Maine aapke post per isse pahle bhi comment dala tha but shayad kuch problem hai mera cmnt mujhe nahi dikha:-(

मेनका ने कहा…

aap sabka bahut bahut dhanyabaad..dil se :)