04 मार्च 2008

चल-चल रे बादल चल


चल-चल रे बादल चल
हवा के संग उड़ कर,
किस देश तू है पँहुचा?
पूछते है सब तुझसे यँहा?
बता क्या है? तेरा परिचय
किस जमीन के टुकड़े पर तू बरसेगा?

चल-चल रे बादल चल
सोच मे तू, उलझा क्यों रहेगा?
इस टुकड़े पर कब तक झुका रहेगा?
इस जमीन की सीमा को भी लाँघ जा,
बता क्या है? तेरी मनसा
किसे खुश, किसे नाराज करेगा?

चल-चल रे बादल चल
हवा के संग उड़ जा कही और
ठूंठ अपना, कंही दूसरा ठिकाना
जिस जमीन का कोई हिस्सा ना हो,
जंहा कोई न पूछे तुझसे तेरा परिचय,
बुलाये तुझे प्यार से, वँहा जाकर बरस जा

चल-चल रे बादल चल
जिस नगरी हो तेरा इन्तजार,
आँखे घड़ी-घड़ी देखे तेरा रास्ता
जंहा तेरा ना हो, कोई बन्धन
बांधे ना कोई तुझे, सीमाओं संग
उस माटी पर रस बरसा

चल-चल रे बादल चल

2 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

menka jee,
saadar abhivaadan. badalon se gufatguu achhee lagee. likhtee rahein hum padhne ke liye baithe hain na.

mehek ने कहा…

चल-चल रे बादल चल
जिस नगरी हो तेरा इन्तजार,
आँखे घड़ी-घड़ी देखे तेरा रास्ता|
जंहा तेरा ना हो, कोई बन्धन
बांधे ना कोई तुझे, सीमाओं संग
उस माटी पर रस बरसा|
bahut sundar bhav