27 मार्च 2008

बदरा


घटायें छाये घनघोर
चले हैं किस ओर?
कहते है, कारे-कारे बदरा
बरसेंगे आज, तुम्हारे अंगना
पंछी उड़-उड़ कर
लौट रहे है, अपने घर
ताके नयन राह तुम्हारी
बेचैनी सी लागे, घड़ी-घड़ी
चपला जब चमके बादल मे
तन थर्राये, मन ये कापे
सुन्दूरी नही, आज गोधुली
रह रह कर, चमके बिजुरी
दिन का उजाला हुआ कम
चढ़ने लगा, अब श्याम रंग
गिरने लगी बूंदे टिप-टिप
आँगन को भिगोती रिमझिम
मन मे कभी, उठे हजार लहरें
कभी कदमों की आहट सुनें
डरा जाए, बदरा ये कारे-कारे
लौट के जाओ तुम, उससे पहले|



1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

barsaat ki bhini khusbu aa rahi hai,bahut hi sundar hai.