सुरभि....
हवा के संग इन कविताओ की सुरभि आपके जीवन को भी सुगंधित कर जाये|
25 जनवरी 2008
माँ
ओह माँ तेरी ममता कि सी छाँव कही नहीं है जांहा आकर हर दुःख दूर हो जाये हर आंसू बिलुप्त हो जाये ऐसी वो धार और कही नहीं है जो तू फेर दे प्यार भरा वो हाँथ फिर से मेरे माथे पर दूर हो जाये मेरी हर थकन ओह ...ऐसा आराम और कही नहीं है ओह माँ तेरी ममता कि सी छाँव कही नही है
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