19 दिसंबर 2008

वो बच्चे


खेतों खलिहानों मे दौड़ते वो बच्चे
मिट्टी से सने पानी मे खेलते वो बच्चे
पसीने से तर है उनके बदन
बिन कपडों के नंगे है उनके बदन
भूख से बिलबिलाते वो बच्चे
धुप मे काले हो गए उनके चेहरे
भूख से कभी पीले पड़ गए वो चेहरे
माता पिता को कड़ी मेहनत करते देख रहे वो बच्चे
फिर कैसे उनसे रोटी मांगे वो बच्चे
खेल मे तल्लीन रहने का करते है बहाना
भगवान् से बस प्रार्थना करते है वो बच्चे
कब अच्छे दिन आयेंगे? जब पेट भर वो भी खा पायेंगे
किसान जो लाखों का पेट भरता है
जो हमें सक्षम सबल बनता है
कितनी विडम्बना है उसकी
भूख से बिलबिला रहे है उसीके बच्चे
दो जून की रोटी के लिए रो रहे है
उसे फटे चिथडों को पहनाना पड़ता है
पाठशाला का कभी मुंह नही देखे, वो बच्चे
हाय रे ! और उन्हें ही देश का भविष्य बनाना है
कैसे भविष्य बनायेंगे वो बच्चे ?
जो ख़ुद इतनी जर्जर अवस्था मे है वो बच्चे

5 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

आपने बहुत अच्‍छे भाव को बढिया व्‍यक्‍त किया है।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही भावुक कविता लिखी है आप ने, लेकिन सुंदर शव्दो से सजाया है इसे.
धन्यवाद

अमिताभ ने कहा…

menkaji,
yatharth .. masoom bachpan ki peeda
bahut sare sawal bhi ???
log bachcho ko khuda kehte hain?
ye hamare samaj ka doglapan hi hai.

aasman ke khuda
zameen ke khuda ko bhi dekh

with regards
amitabh

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

Menkaji,
Ve Bachche ...bahut hee kadvee sachayee,evam yatharth likha hai apne apnee kavita men.Hamare desh men bachchon ke jo halat hain unko theek karne ke liye hame ,apko sabhee ko avaj uthanee hee hogee.
Apne blog men to main abhee sirf bachchon ke sthitiyon par hee kam kar raha hoon.Yadi ap mere blog kee sadasya banana chahen to apka svagat hai.
Hemant Kumar

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

Menakaji,
Apne apnee kavita ke madhyam se desh ke bachchon ki sahee halet ko dikhaya hai .Meree shubhkamnayen.
Poonam