24 सितंबर 2008

नदियाँ-नईया


हिलोरें मारे जब नदियाँ
लहराए हवा चंचल
डगमग-डगमग डोले नईया

डराए उसे सताए उसे
करे शरारत
धीमी करे उसकी रफ़्तार

बिजली सी हँसती, लहरें
छू कर जाए बार-बार
करे उस पर वार

उफान सी लिए ख़ुद मे
उठती है मस्तानी लहरें
तूफ़ान कोई उठता हो जैसे

हिला कर नईया को
झकझोरे हवा उसे
करे, बस अपनी मनमानी

मिलती है राहों मे
कई मुश्किलें पथ रोके
नईया की प्राण अटके

पतवार तोडे, पत्थरीली राहें
जंगली हिरणी सी धारें
नईया की दिशा भुलायें

चलती जाए, बढती जाए
संग-संग नईया नदियाँ के
किनारों को ख़ुद मे घुलाते-मिलाते

माने नही कोई अपनी हार
एक नईया दूजी नदियाँ
एक ने अपनी ठानी, एक तूफानी

नदियाँ के संग हवा और लहरें
नईया की बस एक पाल, पतवार
साथ दे उसका, करे उसे पार|

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Very inspiring poem.

बेनामी ने कहा…

ati vishisht ... asrkark.... rachna..... smrpit rhiye....

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

bahut badhiyaa rachanaa hai.

माने नही कोई अपनी हार
एक नईया दूजी नदियाँ
एक ने अपनी ठानी, एक तूफानी

राज भाटिय़ा ने कहा…

माने नही कोई अपनी हार
एक नईया दूजी नदियाँ
एक ने अपनी ठानी, एक तूफानी
बहुत ही सुन्दर हे आप की यह कविता, हर लाईन पर बरबस ही वाह निकलती हे
धन्यवाद

मेनका ने कहा…

aap sabhi ke protsaahan ke liye dhanyabaad.