18 मार्च 2008

देश-परदेश



एक सफर मे उससे मुलाकात हुयी
वो था, एक टैक्सी ड्राईवर
हम थे राही
बातें हुयी, कुछ विषयों पर
आदान-प्रदान हुआ कुछ विचारों का
हम थे परदेश मे, देश की बातें होने लगी
उसकी आंखें कहीं गुम हो गयी
क्या जाने क्या? कुछ खोजने लगी
पूछा हमने जाते हो देश को?
उसने मायूसी से कहा .....
याद तो बहुत आती है मिट्टी की
लेकिन जाए तो किस से मिलने जाए?
देश से निकले बीस बरस बीत गए
अब कोई नही अपना, वहाँ देश मे
क्या करें हम? अब हालात हैं ऐसे
हम ना रहे यहाँ के, ना रहे वहाँ के
यहाँ वो अपनापन नहीं मिलता
यहाँ अपनों की बातें नहीं होती
परदेश मे रहना, मज़बूरी है हमारी
आख़िर रोटी भी तो है जरूरी ...
अब पैसे तो बहुत कमा लिए हमनें
इस दौड़ मे, देश छुट गया पीछे
यहाँ परदेश मे, हम रह गए अकेले
आज देश की बहुत याद आती है
पर यही सोचते है....
हम जाए तो कहाँ जाए?
बातें उसकी गुजती हैं मन मे
मायूसी उसकी, आंखों मे तैरती है
तड़प उसकी, बार-बार हमें झकोरती है
क्यों है यहाँ हम? सब छोड़ कर परदेश मे
वहाँ क्या नही मिलता? अपने देश मे ......






1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

ek pardesi ki bhavana sahi bayan ki hai aapne,bahut sundar