07 जुलाई 2008
सागर ....जीवन का
यूँ तो दिल करता है,
चुन लाऊं, कुछ ऐसी सीपी
जिसके सिने मे हो मोती|
पर, सागर की लहरों को देख कर
कभी कदम बढ़ते है,
कभी कदम, पीछे हट जाते है
दिल कभी उन लहरों को देख कर,
उसकी सफ़ेद फेनिल मे डूब जाता है|
कभी तरंगो की उचाईयां,
पलकों के बंद करने पर भी,
ख़ुद मे मुझे समां ले जाती है|
कैसे लाऊं? वो सीपी ....
जिसके सिने मे हो मोती|
डर अगर लगता है, सागर से
तो कैसे करे, प्यार जीवन से ?
सागर की लहरों के संग
लहराना होगा मुझे,
खोल कर, अपने दोनों हाँथ|
डूब जाना होगा, समुन्दर की गहराई मे
उस अंधेरे को चिर कर,
जाना होगा रौशनी की तरफ़|
उस सागर की गर्भ मे उतर कर,
वापस आना होगा, तरंगो के संग
बंद अपनी मुठ्ठी मे, वो सीपी ...
जिसके सिने मे हो मोती|
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2 टिप्पणियां:
खोल कर, अपने दोनों हाँथ|
डूब जाना होगा, समुन्दर की गहराई मे.....
bahut khubsurat bhaw.
वाह क्या भाव हे हमारा यह संसार भी तो एक समुन्द्र ही हे, ओर अच्छा जीवन साथी एक सीप का मोती हे,धन्यवाद एक सुन्दर कविता के लिये
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