25 अप्रैल 2008

अम्बर


नीली छतरी,
मौसम भीनी -भीनी,
पागल ..........पानी
रस बरसाये,
अम्बर
ओढे धरती, चुनर धानी-धानी|
भींगे धरती,
महक सोंधी-सोंधी,
आवारा.....बादल
रूप बदले,
अम्बर
झुक-झुक आए बारी-बारी|
शीतल वयारी,
सिहरन ठण्डी-ठण्डी,
चतुर.......बिजली
हठ करे,
अम्बर
कड़के धडके, करे मनमानी|
बिजली-मेघ-पानी,
सबने अपनी ठानी,
दम भरे.....अपना
डरती-घबराती....धरती रानी,
अम्बर
अंक समाये, बन दुल्हन नवेली|

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

kavita rason ka saagar hai ,ek umang hai ....
aap ise aise hi jaari rakhen...

अमिताभ ने कहा…

ओढे धरती, चुनर धानी-धानी|
भींगे धरती,
महक सोंधी-सोंधी,
आवारा.....बादल
रूप बदले,
अम्बर
झुक-झुक आए बारी-बारी|

behad sundar ....prakriti ke sundarta ko behad khoobsurat andaz me aapne likha .very nice !! keep it up!!

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
मेनका ने कहा…

Â
बिजली-मेघ-पानी,
सबने अपनी ठानी,
दम भरे.....अपना
डरती-घबराती....धरती रानी,
अमॠबर
अंक समाये, बन दॠलॠहन नवेली|
menka ji ati sundar,har shabd khubsurat gehno se saja hai,mann prafulti ho utha.sadar mehek.

From MEHEK

बेनामी ने कहा…

'ओढे धरती, चुनर धानी-धानी!' Ahha, bahut khoob!