05 मार्च 2008

आज की ताज़ा ख़बर


चाय की चुस्की लेते हुए,
आज का अखबार पढने बैठे|
नजर गई, आज की ताज़ा ख़बर पर
पत्नी पीड़ित पति ने कोर्ट की ली शरण|
बेटे ने बाप को, पैसों के लिए धमकाया|
सोचा ....भाई ये क्या जमाना आ गया?

नजर आगे, और खबरों पर गई
राजनीति मे नेताओं की राजनीति से
मन खिन्न हुआ, चाय फीकी लगी
हमने एक प्याला और बनाया|
पढ़ते हैं, कहीं स्कूल बस खड्डे मे जा गिरी
कहीं रेल-पटरियों को आतंकवादियों ने उडाया|
सरकार ने घायलों को मुवाबजे का ऐलान किया|
तभी एक दूसरी ख़बर ने मुझे चौकाया
मृत सैनिकों के परिवार जनों ने, रोष है जताया
कारण ..वर्षों से ना मिली घोषित सरकारी सहायता
उफ़! ....ये क्या जमाना आ गया?

चुस्कियों संग नजर खबरें देखती गयी|
हर ख़बर से मन विचलित होता गया|
कहीं चोरी, कहीं मर्डर, कहीं डाका
कहीं बंदूकें, कहीं अपहरण, कहीं गोलियाँ|
क्या-क्या चल रहा है मेरे देश मे?
कभी जो हुआ करती थी सोने की चिडियाँ,
किसान कर रहे हैं, वहाँ आत्महत्या|
सरकारी कुर्सियों पर बैठे नेताओं की,
बढ़ रही है, तन्खावाह|
वहाँ गरीबी से तंग, बाप ने बेटी को बेच डाला|
ओह!...ये क्या जमाना आ गया?

कैसी-कैसी ये खबरें, हर ख़बर
चाय का मसाला बन कर है रह जाती|
चाय की चुस्की संग प्रत्येक नागरिक इसे पढता है,
चाय की प्याली के खत्म होते ही,
ये खबरें भी बंद हो जाती हैं|
अखबार को बंद कर, उलट कर रख दिया जाता है|
'आज की ताज़ा खबरें' अखबार मे कहीं दफन हो जाती हैं|
अरे, सरकार की तरह मेरी चाय भी ठंठी हो गई
सरकार, जो सिर्फ़ कुछ वादों पर बनती और टूटती है
सब वादें 'गरमा-गरम ख़बर' बन जाती है|
मैंने भी एक और प्याले का जी बनाया|
और वही मैंने भी सोचा, जो हर कोई है सोचता|
गंभीर है समस्या....क्या होगा इस ज़माने का?

कोई टिप्पणी नहीं: